डहेलिया ---- मनमोहक मुस्कान बगिया की शान

डहेलिया-
  1. Dahlia Plant's
     introduction -------

Dahlia is a genus of bushy, tuberous, herbaceous perennial plants native to Mexico. A member of the Asteraceae, dicotyledonous plants, related species include the sunflower, daisy, chrysanthemum and zinnia. Wikipedia

Scientific name: Dahlia
Higher classification: Coreopsideae
Rank: Genus

हिन्दी नाम--- डहेलिया ,'डैलिया' या 'डाहलिया', 'Dahlia'

डहेलिया (Dahlia) सूर्यमुखी कुल, द्वि दली वर्ग का पौघा बहुत ही सुन्दर पौधा  है।यह सुन्दरता में गुलाव के लगभग सदृश ही है। यह वास्तव में मेक्सिको तथा मध्य अमरीका का निवासी है। यह संसार में वहीं से सब स्थानों पर फैला है। बड़े आकार का अनेक रंगों और आकारों में पाया जाने वाला ऐसा आकर्षक फूल है जिसमें नीले रंग को छोड़कर विभिन्न रंगों और रूपाकारों की 50,000 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। रंगबिरंगे फूलों के कारण डैलिया के पौधे बागों की शेभा बढ़ाने के लिये लगाए जाते हैं।
इसका नाम डहैलिया Dahlia क्यों पड़ा------  
'डाह्ल' (Dahl) नामक स्वीडिश वृक्षविशेषज्ञ की स्मृति में लिनीयस ने इस पौधे का नाम 'डैलिया' या 'डाहलिया' रखा। इसके पौधे दो-ढाई मीटर तक ऊँचे होते हैं, परंतु एक बौनी जाति केवल आधा मीटर ऊँची होती है। डैलिया के पौधों की जड़ों में खाद्य पदार्थ एकत्र होकर उन्हें मोटी बना देते हैं। इनके फूल सूर्यमुखी के सदृश होते हैं। इनकी नई किस्मों में गेंद के समान गोल तथा रंग बिरेंगे फूल जगते हैं।                                                  
डैलिया की नई किस्में बीज से पैदा की जाती हैं। डैलिया की जड़ें, जिनमें छोटी छोटी कलियाँ होती है, पौधों का रूप लेने की क्षमता रखती हैं। ये जड़ें छोटे छोटे टुकड़ों में इस प्रकार काटी जाती हैं कि हर टुकड़े में एक कली हो। इन टुकड़ों को जमीन में बोने पर, कलियों से नए पौधे निकलते हैं। कभी कभी इसके तने की कलम भी काटकर लगाई जाती है और उससे भी नए पौधे पैदा किए जाते हैं। डैलिया के पौधे अधिकतर खुली जगह तथा खादयुक्त, बलुई मिट्टी में भली भूंति विकसित होते हैं। अधिक शीत पड़ने पर इसके फुल मर जाते है। ऐसी दशा में इसकी जड़ें साफ करके दूसरे मौसम में बोने के लिये रख ली जाती है इसके पौधों पर कीड़े भी लगते हैं, जो संखिया के छिड़काव से मारे जाते हैं।
     
गुलाब और गुलदाऊदी की मनमोहक जातियों के बाद डहेलिया ही एक ऐसा पुष्प है जिस की हजारों किस्में अलग-अलग रंगों तथा आकार में बगीचों की शोभा बढ़ातीं हैं। 
 क्यारियों,गमलों एवं बार्डर में लगे इस के फूलों की छटा देखते ही बनती है।
फूलों में डहेलिया अपने रंग एवं आकार के कारण सब से आकर्षक लगता है। अगर बगीचे में यह फूल खिला हो तो बगीचे की मुस्कान ही अप्रितम होती है। छोटे घरों में गमलों में तथा बड़े घरों के उद्यानों में इसे आप भी उगा सकते हैं।और इसकी मनमोहक छटा का आनन्द ले सकते हैं।
स्थान का चुनाव
डहेलिया को क्यारियों और गमलों दोनों में उगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिये पूर्ण रूप से खुला स्थान चाहिये, जहाँ कम से कम 4 से 6 घंटे धूप आती हो। क्यारियाँ कंकड़पत्थर रहित हों। उस की मिट्टी में 
10 किलो प्रति वर्ग मीटर  के हिसाव से गोबर की सड़ी खाद अवश्य मिला दें। 
अगर आप डहैलिया को गमलों में उगाना चाहते हैं  तो गमले कम से कम 12 से 14 इंच के अवश्य लें मिट्टी व गोबर की खाद की बराबर मात्रा को गमलों में भर दें। ध्यान रहे गमले पूरी तरह मिट्टी से न भरे जाऐं इनका ऊपरी हिस्सा कम से कम 2 से ढाई इंच खाली हो जिससे गमलों पानी के लिये स्थान मिल सके। 
डहेलिया की कटिंग काटना
आप पौधे स्वयं भी तैयार कर सकते हैं।
डहेलिया के नए पौधे आप स्वयं भी तैयार कर सकते है। इसकी दो विधियाँ हैं- 
1- कटिंग विधि----- 
  
कटिंग को जमीन में लगाना
कटिंग से पौधा बनकर तैयार
सब से अच्छी विधि कटिंग द्वारा पौधा तैयार करना है। पुराने पौधों की शाख़ाओं के ऊपरी भाग से सितम्बर के महीने में 8 सेंटीमीटर लम्बी कटिंग काट लें। इन को मोटे रेट या बदरपुर में 2 इंच की दूरी पर डेढ इंच गहराई में लगाएं। लगाने के बाद 3 दिन तक कटिंग लगाए गए गमलों को छायादार स्थान पर रखें। इन से 15 दिन के बाद जड़ें निकल जाती हैं। इस के बाद ही इन्हें 10 से 12 इंच के गमलों में लगाते हैं।
सीधा पुराने पौधे के वल्व (टयूवर) से तैयार करना 
2- वल्वों (ट्यूबर) द्वारा पौधॆ उगाना-
वल्व से बने हुये पौधों अलग करना 
 फूल आने के बाद जब पत्तियाँ पीली पड़ जाऐं तब पौधें की जड़ों को खोदकर(डहेलिया में पुराने पोधे में नीचे शकरकंद की तरह की गाँठे बन जाती हैं) बाहर निकाल लें इन्हैं वल्व या ट्यूबर कहा जाता है और इनसे बड़ी ही उच्च क्वालिटी के पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं। बस करना यह होता है कि पहले तो पौधों के मुरझा जाने पर इनके बल्वोंं को निकाल कर अलग गमलों में बालू डालकर उन गमलों में दवा कर सुरक्षित  छायादार स्थान में रख लिया जाए और उपयुक्त समय अर्थात दिसम्बर-जनवरी के महिने में पुराने पौधों की सावधानी पूर्वक निकाल कर बीमार फफूदीं ग्रस्त जड़ो को अलग कर दें,तथा गमलों में मिट्टी तैयार करके उनका ख्याल रखा जाऐ कि कहीं गमलों में ज्यादा सूखा व नमी तो नही है पर्याप्त मात्रा में पानी लगाकर हम उसके पिछले बल्वों को उगने का मौका दे सकते हैं। और हम इनसे पौधे तैयार कर सकते हैं।तथा नये पौधे लाने के झंझट से भी बच सकते हैंं।उपर चित्रों में सब बताया गया है।
2- बीज़ द्वारा उगाना----
यदि गमलों में उगाना हो तो उस में दोमट मिटटी एवं गोबर की खाद बराबर हिस्सों में मिला कर भर दें। एक गमले में एक ही पौधा रोपें। पौध रोपने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए। क्यारी में लगाना हो तो 45 सेंटीमीटर दूरी पर पौधे रोपें। क्यारी को 10 इंच गहरा खोद लें। इस के बाद 100 ग्राम सुपर फास्फेट, 100 ग्राम सल्फेट पोटेशियम, 25 ग्राम मैग्नेशियम सल्फेट प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र के हिसाब से दें। साथ ही फूल में चमक लाने के लिये खाड़ी फसल में एक चम्मच मैग्नेशियम  सल्फेट को 10 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव कर दें।
देखभाल
डहेलिया  के पौधे जब 1 फुट ऊंचे हो जाएँ तथा उन पर 8 से 12 पत्तिया आ जाएँ तब पौधे के ऊपरी भाग को हाथ से नोच दें। ऐसा करने से बगल की शाकाएं अधिक निकलेंगी तथा पौधे पर कई फूल आएँग। साथ ही पौधा घना दिकाई देगा। प्रति पौधा 4 से 6 शाखाओं को ही रखना चाहिए।


सहारा देना
 पौधों को सीधा बढ़ने और रखने के लिये सहारा देना आवश्यक होता है। सहारा देने के लिये बांस की पतली डंडियाँ जमीन अथवा गमले में गाड़ दी जाती है। पौधे को सुतली से 2 स्थानों पर बाँध देते हैं। ध्यान रखें, पौधों को सुतली या तार से ज्यादा कस कर न बांधें।
कलियों को तोड़ना

पौधों पर फूल के आकार व गुणवत्ता को देखते हुए प्रति पौधा 3 पुष्प कलिकाओं को ही रखा जाता है। केवल शीर्ष कालिका को ही रखना चाहिए, बाकी को मटर के आकार का होने पर तोड़ देते हैं। प्रदर्शनी के लिये पौधे पर 3 शाखाओं को ही रखना चाहिए, ताकि फूल का आकार बड़ा हो सके, शेष सभी सहाखाओं एवं कलिकाओं को तेज चाकू से काटते रहें।
पानी देना
गरमी पड़ने पर सप्ताह में 2 बार पाने देने की जरुरत पड़ती है। जाड़े के मौसम में 8 से 10 दिन के अन्तराल पर पौधों को पानी देना चाहिए।
सुरक्षा
डहेलिया के पौधों को सर्दी के मौसम में सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है पाले से अतः पाला पड़ने के समय पर्याप्त मात्रा में पौधों की सिचाई करते रहैं।

व्यवसायिक स्तर पर डहैलिया की खेती----

डहेलिया की खेती

रोपाई:- डहेलिया की अधिक पैदावार लेने के लिए उसे सदैव पंक्तियों में उगाया जाता है। बड़े आकार और आकर्षक फूल लेने के लिए उन्हें उचित दूरी पर रोपते हुए दो पौधों के मध्य की दूरी सभी प्रकार की किस्मों यथा बड़ी, मध्यम या छोटी प्रजाति के लिए समान रखी जाती है जिसे ७० सेमी० उपयुक्त पाया गया है। दो पंक्तियों के मध्य की दूरी ५० सेमी० उपयुक्त समझी जाती है। एकान्तर रोपण सर्वोत्तम पाया गया है क्योंकि ऐसा करने से प्रत्येक पौधे को पर्याप्त स्थान मिल जाता है। जिसके कारण उसे पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व और नमी मिल जाते हैं। जिससे पौधे का विकास एवं बढ़वार भली-भांति हो जाती है। अन्तत: पौधों से बड़े आकार के आकर्षक फूल मिलते है। रोपाई खुर्पी की सहायता से की जाती है। पौधे को रोपने के उपरान्त चारों ओर से भली-भांति दबाने के बाद फौव्वारे से हल्का पानी देना उपयुक्त रहता है। यदि अधिक क्षेत्र में रोपाई की गयी है तो हल्की सिंचाई की जाती है।
पर्वतीय क्षेत्रों में अंकुरित कंदों को सीधा बो दिया जाता कहने का अभिप्राय यह है कि पहले उन्हे गमलों में रोपकर अंकुरित नहीं किया जाता जैसा कि मैदानी क्षेत्रों में किया जाता है। इस विधि में अंकुरित कंदों को निर्धारित दूरी पर इस प्रकार रोपा जाता है कि कंद भूमि तल से लगभग ८ सेमी० नीचे रहें प्रथम सप्ताह में पानी नहीं दिया जाए और यदि आवश्यकता हो तो एक हल्की सिंचाई की जाए कभी भी पूरा कंद नहीं रोपना चाहिए बल्कि उसे विभाजित करके उसे गमलों में रोपकर नये पौधे बना लेने चाहिए।
सहारा देना:- डहेलिया के पौधों को जितनी जल्दी हो सके, सहारा देना चाहिए। अन्यथा उनके गिरने का भय बना रहता है, इसके पौधे तेज हवा, तेज वर्षा या खेत में अधिक पानी खङा रहने के कारण गिर जाते है पौधों को सहारा देने के लिए बाँस-खपचे या कोई अन्य कठोर लकड़ियों की छड़ों का उपयोग किया जा सकता है। पौधे के साथ बाँस की खपच्च को गाङकर उसे एक स्थान पर सुतली से इस प्रकार बाँधे कि वह अरबी भाषा की आठ संख्या जैसा दिखाई दे।
रोपने का उचित समय:- डहेलिया के रोपण को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है यथा पर्वतीय क्षेत्रों में और मैदानी क्षेत्रों में रोपाई का समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होता है। श्रीनगर, शिलाँग, दार्जलिंग, उटकमण्ड, पिथौरागढ, के लिए डहेलिया के पौधों की रोपाई का उपयुक्त समय अप्रैल और मई है और बंगलौर के लिए मई और जून उपयुक्त समय है। कोलकाता में पौध रोपण का उपयुक्त समय सितम्बर से नवम्बर तक है। सितम्बर से दिसम्बर तक का समय दिल्ली, लखनऊ, राँची, भुवनेश्वर, देवधर, नागपुर, गुवाहाटी के लिए उपयुक्त है मुम्बई के लिए अक्टूबर और नवम्बर और चेन्नई के लिए अक्टूबर सर्वोत्तम समय है।
खरपतवार-नियंत्रण:- डहेलिया की क्यारियों में अनेक खरपतवार उग आते है, जो भूमि में पोषक तत्त्वों नमी, धूप, स्थान और हवा के लिए प्रतिस्पर्धा करते है इसके अतिरिक्त कीड़ों और रोगों को भी आश्रय प्रदान करते हैं। जिसके कारण उत्तम गुणवत्ता वाले फूल नहीं मिल पाते। अत: आवश्यकतानुसार निराई-गुङाई करनी चाहिए। डहेलिया उथली जङ वाली फसल है। अत: गहरी निराई-गुङाई नहीं करनी चाहिए आमतौर पर १० दिन के अंतर से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
कीट-नियंत्रण:- डहेलिया के पौधों को एफिड, थ्रिप्स विशेष रुप से क्षति पहुँचाते है, ये दोनों पौधे के विभिन्न भागों का रस चूसते हैं। इनकी रोकथाम समय पर करनी चाहिए। रोकथाम- रोगार (२.५ मिलि० प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए।
रोग-नियंत्रण:- चूर्णी फफूंदी- यह रोग एक प्रकार की फफूंदी के कारण होता है। जिसके कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद या भूरे रंग का चूर्ण दिखाई पङता है यह रोग शुरु की अवस्था में अधिक लगता है और दुबारा जब फूल आने बंद हो जाते है, यह रोग लगता है इस रोग के कारण बीजों के सिरे गल जाते हैं। इस रोग को लगते ही इसकी रोकथाम करनी चाहिए।
रोकथाम:- बावस्टिन, मोरेस्टान या बेनलेट २ ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें। इनमें किसी एक दवा का उपयोग करना होगा यदि इन दवाइयों में से कोई उपलब्ध न हो तो उस स्थिति में घुलनशील गंधक (२ ग्राम प्रति लीटर पानी) का उपयोग करें। चारकोल गलन- यह रोग गर्म और वर्षा वाले मौसम में डहेलिया को अधिक क्षति पहुँचाता है। यह रोग मुख्य तने और सभी शाखाओं के आधार पर लगता है। यदि समय पर उसकी रोकथाम न की जाय तो पौधा मर जाता हैं। रोकथाम- कैप्टान (२ ग्राम प्रति लीटर) प्रति सप्ताह भूमि पर छिड़कना चाहिए।
कटाई:- फूलों की कटाई किस अवस्था में और किस समय की जाये। यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी ओर आमतौर पर कम ध्यान दिया जाता है फूलों की कटाई उसके उगाये जाने के उद्देश्य पर निर्भर करती है। यदि आप फूलों की कटाई घट प्रदर्शनी के लिए कर रहे है तो उनकी कटाई सुबह को करनी चाहिए। जहाँ तक संभव हो उतनी लम्बाई में फूल काटना चाहिए कटाई ४५ डिग्री के कोण पर करनी चाहिए और काटे गये तनों को तुरन्त पानी से भरी बाल्टी में रखनी चाहिए। फूलों वाली बाल्टी को ठंडे और स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए, ताकि फूलों पर मिट्टी धूल न लग सके फूलों से गमला बनाते समय आवश्यकतानुसार तनों को छोटा करने की स्थिति में उनकी कटाई करनी चाहिए।

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